Tuesday, January 15, 2013

बोलना मना हैं, लेकिन बलात्कार नहीं।


इस देश की खासियत ही कुछ ऐसे है की जब गलत कामो के लिए किसीका हाथ उठता हैं, तब हमारी आवाज नहीं उठती। उन गलत कामो को रोकने की कोशिश नहीं होती। सो तो सो ऐसी बातो की आवाम चर्चा भी नहीं होती।
 
इन हलाथो को देखते हुए कुछ आश्चर्य नहीं होता जब भारतीयों को अपनी बात बताने की आज़ादी नहीं मिलती।
 
आवाज़ उठाना अपनी संस्कृति के खिलाफ है ऐसा माना जाता है। पर क्या इस देश की भलाई के लिए कुछ कहना गलत बात है? क्या जुर्म को रोकना, आम आदमी की परेशानियों को सामने लाना और अपने जजबातो को बयां करना गैरकानूनी है?
 
जब दिल्ली मै बलात्कारियों के खिलाफ मोर्चा चल रहा था, तब पुलिस ने मोर्चा मै शामिल होने वालो को दंडी दी।
 
यही दंड उन बलात्कारियों को क्यूँ नहीं मिली जब वोह इतना घिनौना कृत्य कर रहे थे?
 
क्या यह देश मै सब को अपने मुह पे ताला लगाके घूमना चाहिए?
 
क़ानून की दी गयी आजादियों का फायदा ही क्या जब आम जनता उनका उपयोग ही न कर सके?
कोई उनको बाते करने से क्यों नहीं रोकता जो औरतो को भला बुरा सुनाते है?
यह कैसी आज़ादी जहाँ पे जनता को उनके अधिकार का उपयोग ही नहीं?
 
असली आज़ादी चाहिए, तो लोगो की बातो को सुनो, उनकी तकलीफों को समझो, और देश को उनकी नज़रों से देखो। तभी भारत सचमुच आज़ाद होगा।

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